अपार दौलत का स्वामी एक राजकुमार गौतम बुद्ध की प्रेरणा से संन्यास के लिए प्रेरित हुआ। राज्य की जनता हैरान थी। संसार के सभी सुखों के अभ्यस्त राजकुमार ने अचानक आखिर यह फैसला क्यों लिया? हुआ यह कि बुद्ध के नगर आगमन पर राजकुमार उनके पास गया और चरणों पर गिरकर बोला मुझे दीक्षा दीजिए, मैं सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण जीवन त्याग दूंगा। उनके साथ आए राजकर्मचारी चकित रह गए।
उन्होंने बुद्ध से पूछा कि यह चमत्कार है, यह कैसे हुआ। आपने आखिर ऐसा क्या किया कि राजकुमार में इतना भारी परिवर्तन आ गया। बुद्ध ने कहा, मैंने कुछ नहीं किया। यह मन का चमत्कार है। मन के लिए एक छोर से दूसरे छोर तक जाना बड़ा आसान है। जो व्यक्ति धन-संपदा के पीछे पागल नहीं, वह उसे त्याग भी नहीं सकता।
जो व्यक्ति संपदा के पीछे भाग रहा था, जो सुखों के उपभोग में डूबा हुआ था, वही जब संपदा का त्याग कर देता है, तब भी उसके पास वह पागलपन बचा रहता है। जबकि संसार के ज्यादातर प्राणी मध्यमार्गी बने रहते हैं। उनमें न संपदा के उपभोग का पागलपन होता है, न उसके परित्याग का। -
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