इंटरनेट की गतिशीलता और बदले नेट संचार के आंकड़े बड़े ही दिलचस्प हैं। विश्व स्तर पर इंटरनेट के यूजरों की संख्या 1.6 बिलियन है। इसमें एशिया का हिस्सा आधे के करीब है। एशिया में 738 मिलियन इंटरनेट यूजर हैं। इसमें सबसे ज्यादा यूजर चीन के हैं। फेसबुक के 500 मिलियन सक्रिय यूजर हैं। ये लोग संदेश ले रहे हैं और दे रहे हैं। इनके संदेशों की संख्या अरबों-खरबों में है। इसी तरह ट्विटर के यूजरों की संख्या भी करोड़ों में है। ट्विटरों के संदेशों की अब तक की संख्या 10 बिलियन है। यू ट्यूब में दो बिलियन वीडियो रोज देखे जाते हैं।
इंटरनेट की उपरोक्त गति को ध्यान में रखकर देखें तो पाएंगे कि पोर्नोग्राफी देखने वालों की गति क्या होगी ? पोर्नोग्राफी बेवसाइट पर एक पदबंध है जिसका व्यापक इमाल किया जा रहा है और वह है ‘‘Fuck Me Look’’ । इस पदबंध को पढ़कर लग सकता है कि इसका पोर्न के संदर्भ में ही प्रथम इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है। औरत का तो विज्ञापन में कार से लेकर ब्लेड तक इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी वस्तुओं के विज्ञापन में औरत रहती है जिसे औरतें इस्तेमाल नहीं करतीं।
संस्कृति और मासकल्चर की समस्या यह है कि ये दोनों मानकर चलते हैं कि पुरूष हमारी संस्कृति है,पुंसवाद हमारी संस्कृति है। पुरूष ही हमारी संस्कृति का समाजीकरण करता है। इसी पुरूष के ऊपर ‘Fuck Me’ के नारे के जरिए बमबारी हो रही है। इस नारे के तहत विजुअल इमेजों में कहा जा रहा है कि तुम मेरे शरीर के मालिक हो, स्त्री शरीर के हकदार हो।
पुरूष से कहा जा रहा है कि तुम बलात्कार या स्त्री उत्पीड़न के आरोपों को गंभीरता से न लो क्योंकि मैं तुम्हें अपना शरीर भेंट कर रही हूँ। फ़र्क इतना है कि पोर्न बेवसाइट में ‘Fuck Me’ कहने वाली औरत बाजार या गली में टहलती हुई कहीं पर नहीं मिलती।
इसी तरह हार्डकोर पोर्नोग्राफी बेवसाइट में गुप्तांगों का वस्तुकरण होता है, वहां पर स्त्री का सेक्सी लुक सभ्यता को नरक के गर्त में ले जाता है। यह संभावना है कि पोर्न के देखने से बलात्कार में बढ़ोतरी हो यह भी संभव है पोर्न का यूजर सीधे बलात्कार न भी करता हो। लेकिन यह सच है कि पोर्न गंदा होता है और यह दर्शक के सास्कृतिक पतन की निशानी है।
जब तक कोई युवक पोर्न नहीं देखता उसकी जवानी उसके हाथ में होती है। वह अपनी जवानी का मालिक होता है। अपनी कामुकता का मालिक होता है। लेकिन ज्योंही वह पोर्नोग्राफी देखना आरंभ करता है उसका अपनी जवानी और कामुकता पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है। अब ऐसे युवक की जवानी पोर्नोग्राफी के हवाले होती है। उसकी जवानी की ताकत का स्वामित्व पोर्नोग्राफी के हाथों में आ जाता है और इस तरह एक युवा अपनी जवानी को पोर्नोग्राफी के हवाले कर देता है। वह पोर्न देखता है, खरीदता है।
पोर्न बदले में उसके सेक्स के बारे में संस्कार,आदत, एटीट्यूट और आस्था बनाती है। युवा लोग नहीं जानते कि वे अपनी जवानी की शक्ति पोर्न के हवाले करके अपनी कितनी बड़ी क्षति कर रहे हैं। जवानी उनकी कामुक भावनाओं का निर्माण करती है। उनकी कामुक पहचान बनाती है।
जो लोग कहते हैं कि पोर्न के जरिए शिक्षा मिलती है,सूचनाएं मिलती हैं। वे झूठ बोलते हैं। पोर्न के देखने के पहले युवक का दुनिया के बारे में जिस तरह का नजरिया होता है वह पोर्न देखने के बाद पूरी तरह बदल जाता है। पोर्न देखने वाला सिर्फ स्वतः वीर्यपात करता रहता है और उससे ज्यादा सेक्स पाने की उम्मीद लगाए रहता है।
पोर्न की इमेजों में दुनिया,औरत,मर्द,कामुकता ,आत्मीयता ,शारीरिक लगाव आदि के बारे में कहानी बतायी जाती हैं। लेकिन पोर्न की सारी इमेजों से एक ही संदेश अभिव्यंजित होता है वह है घृणा। यह कहना गलत है पोर्न से प्रेम पैदा होता है। गेल डेनिश ने इसी संदर्भ में लिखा था कि पोर्न से प्रेम नहीं घृणा अभिव्यंजित होती है। पोर्न देखकर औरत के प्रति प्रेम नहीं घृणा पैदा होती है। पुरूष औरत के शरीर से घृणा करने लगता है। उसे तो वह शरीर चाहिए जो पोर्न स्टार का है।वैसा सेक्स चाहिए जैसा पोर्न में दिखाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि ’Fuck Me’ का नारा 'Hate Me' की विचारधारा की सृष्टि करता है।
आंद्रिया द्रोकिन ने इस बात पर लिखा है कि ''जब कोई औरत या लड़की के सामान्य जीवन को देखता है तो वह वस्तुत: उनकी क्रूर स्थितियों को देख रहा होता है। हमें मानना पड़ेगा कि सामान्य जीवन में चोट लगना आम बात है, यह व्यवस्था का हिस्सा है,सत्य है। हमारी संस्कृति ने भी इसे स्वीकार किया है। इसका प्रतिरोध करने पर हमें दंड मिलता है। गौरतलब है कि यह तकलीफ देना, नीचे ढकेलना, लिंगीय क्रूरता आदि दुर्घटनाएँ या गलतियाँ नहीं वरन् इच्छित कार्य व्यापार हैं। हमें अर्थहीन व निर्बल बनाने में पोर्नोग्राफी की बड़ी भूमिका है। यह हमारे दमन, शोषण तथा अपमान को सहज और अनिवार्य बनाती है।’
द्रोकिन ने यह भी लिखा है कि ‘‘पोर्नोग्राफर हमारे शरीर का उपयोग भाषा के रूप में करते हैं। वे कुछ भी कहने या सम्प्रेषित करने के लिए हमारा इस्तेमाल करते हैं। उन्हें इसका अधिकार नहीं है। उन्हें इसका अधिकार नही होना चाहिए। दूसरी बात, संवैधानिक रूप से भाषायी पोर्नोग्राफी की रक्षा करना कानून का निजी हित में उपयोग करना है। इससे उन दलालों को खुली छूट मिल जाएगी जिन्हें कुछ भी कहने के लिए हमारी जरूरत होती है। वे दलाल मनुष्य है, उन्हें मानवाधिकार प्राप्त है, वैधानिक रक्षण का सम्मान प्राप्त है। हम चल संपत्ति है, उनके लिए रद्दी से ज्यादा नहीं।’’
आंद्रिया द्रोकिन ने लिखा कि पोर्न के लिए औरत महज भाषिक प्रतीक मात्र है। पोर्न की भाषा दलाल की भाषा है। उन्हीं के शब्दों में ‘‘हम मात्र उनके भाषिक प्रतीक हैं जिन्हें सजाकर वे सम्प्रेषित करते हैं। हमारी पहचान दलालों की भाषा में निर्मित होती है। हमारा संविधान भी हमेशा से उन्हीं के पक्ष में खड़ा है, वही जो लाभ कमानेवाले सम्पत्ति के मालिक हैं। चाहे सम्पत्ति कोई व्यक्ति ही क्यों न हो। इसका कारण कानून और धन, कानून और पॉवर का गुप्त समझौता है। दोनों चुपचाप एक दूसरे के पक्ष में खड़े हैं। कानून तब तक हमारा नही जब तक वह हमारे लिए काम नही करता। जब तक हमारा शोषण नहीं रोकता, हमें मानव होने का सम्मान नही देता।’’
जैसा कि सभी जानते हैं कि अमेरिका पोर्न का मूल स्रोत है। सारी दुनिया में अमेरिका ने पोर्न संस्कृति का प्रचार-प्रसार करके एक नए किस्म की सांस्कृतिक प्रतिक्रांति की है। द्रोकिन ने लिखा है , ‘‘ अमेरिका में पोर्नोग्राफी उन लोगों का इस्तेमाल करती है जो संविधान के बाहर छिटके हुए हैं। पोर्नोग्राफी श्वेत औरतों का चल सम्पत्ति के रूप में इस्तेमाल करती है। यह अफ्रीकन-अमेरिकन महिलाओं का दास की तरह उपयोग करती है। पोर्नोग्राफी बहिष्कृतत पुरुषों (अफ्रीकन-अमेरिकन दासों) का उपयोग कामुक वस्तुओं की तरह जानवरों द्वारा बलात्कार के लिए करती है। पोर्नोग्राफी वृद्ध श्वेत पुरुषों पर नही बनती। ऐसा नही हैं। कोई उन तक नही पहुँच पाता है। वे हमारे साथ ऐसा कर रहे हैं, या उन लोगों की रक्षा कर रहे है जो हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं। उन्हें इसका फायदा मिलता है। हमें उन्हें रोकना होगा।’’
समाज में पोर्न तब तक रहेगा जब तक औरत को संपत्ति माना जाएगा और समाज में संपत्ति का महिमागान चलता रहेगा। संपत्ति पर आधारित संबंधों को नियमित करने में धर्म और मीडिया दो बड़े प्रचारक और राय बनाने वाले हैं। इसी संदर्भ में आंद्रिया द्रोकिन ने लिखा-
‘‘ज़रा सोचें किस तरह विवाह स्त्री को नियमित करता है, किस प्रकार औरतें कानून के अंतर्गत संपत्ति मात्र हैं। बीसवीं शती के आरम्भिक वर्षों के पहले यह स्थिति ऐसे ही बरकरार थी। चर्च महिलाओं को संचालित करता था। जो मर्द स्त्री को अपनी वस्तु समझते थे उनके खिलाफ प्रतिरोध चल रहा था। और अब ज़रा पोर्नोग्राफी द्वारा समाज के स्त्री नियमन की नई व्यवस्था पर गौर करें, यह औरतों के खिलाफ आतंकवाद का लोकतांत्रिक प्रयोग है। रास्ते पर चल रही हर स्त्री को इसके द्वारा यही संदेश दिया जाता है कि उसकी अवस्था नज़रे नीची किए हुए जानवर के समान है। वह जब भी अपनी ओर देखेगी उसे पैर फैलाए लटकी हुई स्त्री दिखेगी। आप भी यही देखेंगे।’’