भारतीय संस्कृति में व्रतोपवास का अत्यन्त महत्तवपूर्ण स्थान है। अनेक स्त्री-पुरुष और बच्चे व्रतोपवास करते हैं। लेकिन व्रत रखने में महिलाओं ने जैसा अधिकार बना रखा है वह ईर्ष्या उत्पन्न करता है। लगभग हर व्रत का कोई न कोई उद्देश्य होता है। अधिकतर व्रतों के अधिकार महिलाओं के पास होने के कारण उन्हीं के उद्देश्य पूर्ण होते हैं और पुरुष घाटे में रह जाते हैं। व्रतों से दूरी बनाए रखने के कारण पुरुष को पता तक नहीं चल पाता कि किस व्रत में उसके खिलाफ़ क्या षडयंत्र रचा जा रहा है। अब करवाचौथ के व्रत को ही लें- अभी तक तो मैं यही समझता था कि स्त्रियाँ यह व्रत अत्यंत निश्छल एवं निष्कपट भाव से करती हैं पर मेरा यह भ्रम उस दिन टूट गया जिस दिन मैंने एक स्थान पर पढा - एक बार पति-पत्नी मंदिर में पूजा हेतु गए। पत्नी भगवान् के आगे हाथ जोड़ कर नतमस्तक होते हुए प्रार्थना करने लगी - "हे भगवान्! हे दया के सागर प्रभो! हे परम कृपालु! तुम मेरी उम्र भी इन्हीं को दे दो।" यह सुनकर पति तैश में आकर नाराज होते हुए बोले - "न, न, इसकी प्रार्थना कभी न मानना भगवन। यह बहुत चालाक और चतुर है तभी तो यह प्रार्थना कर रही है कि मेरी उम्र भी इन्हें लगा दो। यानि जब इसकी उम्र मुझे लग जाएगी तो मैं शीघ्र ही बुड्ढा हो जाऊँगा और यह नवयुवती ही बनी रहेगी। इसके मन में जरुर को कपट है। इसलिए इसकी प्रार्थना स्वीकार न करना वरना सब गुड़ गोबर हो जाएगा।" यह पढ़कर मैं चिन्ता में पड़ गया कि हो न हो, कहीं इस करवाचौथ के व्रत का ही फल तो नहीं है कि मेरे सिर के बाल सफेद हो गए, दाँत गिरने लगे और मुँह पर झुर्रियाँ अपना प्रभाव दिखाने लगी हैं। मैंने सोचा कि कहीं ईश्वर ने श्रीमती जी की प्रार्थना सुन तो नहीं ली जिससे उनकी उम्र मुझे लग गई हो और मैं सचमुच ही समय से पहले बुड्ढा होने लगा। इससे पहले तो मैं यही समझता था कि समय का तकाजा है, एक न एक दिन बुड्ढे होना ही है, तभी तो शरीर उत्तरोत्तर क्षीणता की ओर बढ़ता ही जा रहा है। परन्तु यह पति-पत्नी की प्रार्थना पढ़ कर मेरा माथा ठनका कि कहीं यह करवाचौथ के व्रत का ही परिणाम न हो। अत: इस पर मैंने गम्भीरतापूर्वक विचार करना प्रारम्भ कर दिया कि क्या इससे बचने का को उपाय है? आखिर महात्मा बुद्ध ने भी तो दु:खों से बचने का उपाय खोज ही लिया था। "आवश्यकता आविष्कार की जननी है" इस उक्ति को लक्ष्य में रखकर मैं प्रयत्न करने लगा। आखिकार मेहनत रंग लाई। इस समस्या का समाधान निकल ही आया और वह यह था कि मैंने निश्चय कर लिया कि अब की बार करवाचौथ का व्रत मैं भी रखूंगा। इस प्रकार मैं अपनी उम्र श्रीमती जी को दे दूँगा और दोनों की आयु में सन्तुलन ठीक हो जायगा। मैंने घर में श्रीमती जी के सामने यह प्रस्ताव रखा। यह सुन कर श्रीमती जी एकदम चौंक पड़ीं और बड़ी हैरानी से कहने लगीं, "यह तो स्त्रियों का व्रत है पुरुषों का नहीं। फिर तुम कैसे रखोगे? इसे तो स्त्रियाँ ही रखती हैं।" मैंने कहा, "अब स्त्रियों का एकाधिकार नहीं चलेगा। क्योंकि स्त्रियों ने करवाचौथ का व्रत रखकर स्त्री-पुरुष की आयु के सन्तुलन को ही गड़बड़ा दिया है। इस व्रत से स्त्रियों की आयु तो कम हो जायगी और पुरुषों की आयु अधिक लम्बी हो जायगी। फिर तो गृहस्थी की गाड़ी के दोनों पहिये बराबर नहीं चल सकेंगे। एक पहिया बहुत पहले टूट जाएगा और दूसरा बहुत बाद में। यदि ऐसा हो गया तो गाड़ी का चलना ही बन्द हो जाएगा और चलने की बजाय गाड़ी खड़ी हो जाएगी।" अत: करवाचौथ की पूर्व संघ्या से मैंने व्रत की तैयारी प्रारम्भ कर दी। हालाँकि स्त्रियाँ दिन में व्रत रखती हैं लेकिन सुविधा की दृष्टि से मैंने रात्रि में व्रत रखने का निश्चय किया। इससे दो लाभ थे एक तो सोते रहने के कारण व्रत का समय अच्छी तरह बीत जाएगा और दूसरे भूखे रहने में कष्ट नहीं होगा। वैसे भी दिन-रात्रि में विभक्त २४ घण्टे के समय को ही वास्तव में "दिन" कहा जाता हैं। तो फिर इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि व्रत दिन में रखा गया या रात में। बल्कि रात में व्रत रखना अधिक बुद्धिमानी का काम है। व्रत का प्रारम्भ क्योंकि चन्द्रोदय से होना था, अत: इससे पहले ही अच्छी तरह खा पी कर व्रत हेतु तैयार हो गया। चन्द्र देवता भी उस दिन कुछ उदार लगे और जल्दी ही उग आए। अब मेरा व्रत शुरु हो चुका था। चन्द्रदर्शन के पश्चात् कुछ समय दूरदर्शन के सम्मुख व्यतीत हो गया और कुछ इधर-उधर की गपशप में निकल गया। इसी बीच दस बज चुके थे। अब मैं आराम से सो गया। स्त्रियाँ भी तो दिन में सो जाती हैं। अत: मैंने भी सो जाने में कोई दोष न समझा। प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व ही उठ गया। स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त हुआ। इतने में सूर्यदेव भी उदित हो चुके थे। अत: सूर्य को जल देकर उन्हें प्रणाम किया और प्रार्थना की - "हे देवाधिदेव सूर्य भगवान्! हे कृपानिधन! मेरी उम्र मेरी पत्नी को दे देना।" इस प्रार्थना के बाद मैंने अपना व्रत खोल दिया। इधर प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व श्रीमती जी ने सरगी खाकर अपना व्रत प्रारम्भ कर दिया था। सायंकाल चन्द्रोदय होने पर चन्द्रदेव को अर्घ्य देकर उन्होंने प्रार्थना की - "हे चन्द्र देवता! मेरी आयु मेरे पति को लग जाए।" परन्तु अब मुझे मन में असीम शांति थी, इस बात का सन्तोष था कि आयु परस्पर अदला-बदली हो जाने से अब दोनों की आयु में सन्तुलन बना रहेगा। क्या ही अच्छा हो कि सभी पतिदेव इसी तरह व्रत रखने लग जाएँ जिससे आयु की विषमता दूर हो सके और दोनों में सामंजस्य की भावना फिर से स्थापित हो जाय। उन नवयुवकों को भी करवाचौथ का व्रत प्रारम्भ कर देना चाहिए जिनका विवाह होने वाला है क्योंकि अनेक कन्याएँ भी तो यह व्रत रखती हैं। कहते हैं कि भाग्यविधाता किस्मत में पहले ही लिख देता है कि किसका विवाह किसके साथ होना है। अत: सतर्कता हेतु नवयुवकों को भी इस व्रत में सम्मिलित हो जाना चाहिए। आशा है सभी पुरुष एवं नवयुवक मेरे द्वारा ऊपर बताई गई विधि द्वारा व्रत रखकर पुरुष-एकता का परिचय देंगे। लेकिन यह सोच कर कि महिलाएँ भी तो इस व्रत पर चूड़ियाँ पहनती हैं, चूड़ियाँ पहन कर घर में न बैठ जाएँ। इस व्रत का उद्देश्य स्वयं को जल्दी बूढ़ा हो जाने से बचाना है न कि महिला बन जाना। पुरुष एकता जिन्दाबाद - प्रसन्नता की बात है कि मेरे व्रत का प्रचार-प्रसार होने लगा है। पुरुष व्रत आन्दोलन के प्रयास आगे बढ़ने लगे हैं। |
रविवार, 5 दिसंबर 2010
मेरा करवाचौथ का व्रत
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