ग़ज़ल
बहुत चालाक मुझको ये भले दुनिया समझती है ,
मेरी माँ आज भी मुझको मगर बच्चा समझती है
बहन फूंकी गयी ससुराल में तबसे मेरी बेटी,
कहीं पे नौकरी करने को ही अच्छा समझती है
उसे अपना भी लेती है तो ये बर्ताव रहता है ,
हर एक बेवा को दुनिया मर्द का जुठा समझती है
गलफहमी तुझे कितनी बड़ी ये है की ये दुनिया ,
तेरे चेहरे तेरे कौम का चेहरा समझती है
bahut sundar rachana bhaav ...
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जवाब देंहटाएंउसे अपना भी लेती है तो ये बर्ताव रहता है ,
हर एक बेवा को दुनिया मर्द का जुठा समझती है |
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तारीफ़ में शब्द नहीं हैं .........
बहुत ही सुन्दर विचार और दिल छू लेने वाली रचना है |