बुधवार, 17 नवंबर 2010

उसके रहस्योद्घाटन ने मुझे सकते में डाल दिया।

अगले दिन लाल बाबू आफिस नहीं आए। पता चला कि रात को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें रात को ही समीप के एक प्राइवेट हास्पिटल में भर्ती करना पड़ा। आॅफिस से हम कई लोग उन्हं देखने पहुँचे। अस्पताल के बाहर ही लाल बाबू की पत्नी और उनका बेटा हमें मिल गए। दोनों के चेहरे लटके हुए थे। लाल बाबू की पत्नी की आँखों से आँसू बह रहे थे। हम लोगों ने धीरे–धीरे सारे मामले की जानकारी ली। मालूम हुआ कि लाल बाबू को आई.सी.यू. में रखा गया है। उनके पेट में भयंकर दर्द है। किन्तु आई.सी.यू. में किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है।
लाल बाबू अपनी ईमानदारी और सहृदयता के लिए हमेशा से जाने जाते रहे हैं। अत: हम लोगों की भी उनके प्रति गहरी संवेदना थी। हम लोग अस्पताल के प्रमुख प्रभारी से मिले और उनसे इलाज पर होने वाले खर्च का अनुमान पूछा। उन्होंने लगभग एक लाख रुपए का खर्चा बताया।
खैर, मैंने और गुप्ता ने मेडिकल एडवांस का फार्म भरा और डॉक्टर की सहमति लेकर एक लाख रुपए के लिए आवेदन किया! सुपरिडेंट साहब ने तुरन्त एक लाख का चेक बनवाकर हमारे हवाले कर दिया! चैक अस्पताल के प्रमुख प्रभारी के नाम था।
हमने चैक अस्पताल के काउन्टर पर जमा कर दिया और एक तरह से इलाज के खर्च से राहत महसूस की। लाल बाबू को अस्पताल में सात दिन रखा और उसके बाद मृत घोषित कर दिया गया।
लाल बाबू की मृत्यु की बात सुनकर उनकी पत्नी, बच्चे और परिजन दहाड़े मारकर रोने लगे।
तभी किसी सज्जन ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने मुड़कर देखा, कोइ्र अधेड़–सी उम्र का अपरिचित व्यक्ति मेरे सामने खड़ा था। वह धीरे से बोला,‘‘इधर आइए।’’ मुझ वह युवक एक तरफ ले गया और फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘भाई साहब, आपका वह आदमी तो जिस दिन भर्ती हुआ था, उसी दिन चल बसा था। आप सरकारी मुलाजिम हैं। आपने जो एडवांस का चैक जमा कराया था, उसकी रकम का एडजस्टमेंट करने के लिए तुम्हारे आदमी की लाख को इतने दिन तक आई.सी.यू. में रखा गया था।’’ इतना कह क रवह युवक तेजी से वहाँ से खिसक गया और अस्पताल में जाने कहाँ गुम हो गया! परन्तु उसके रहस्योद्घाटन ने मुझे सकते में डाल दिया।

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