शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

ब्रह्ममुहूर्त


ब्रह्ममुहूर्त रात्रि का चौथा प्रहर होता है। यह उषाकाल अर्थात् सूर्योदय से पहले का समय है। मनुस्मृति में कहा गया है 'ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत् धर्माथर चानु चिंतयेत्। कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदत˜वार्थमेव च' अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त जो प्रात: चार से पांच बजे के बीच का समय होता है में उठकर धर्म, अर्थ और परमात्मा का ध्यान करे, कभी अधर्म का आचरण न करे। ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने शरीर की शुद्धता व स्वास्थ्य रक्षा के उपाय जैसे प्रात: भ्रमण योगासन व प्राणायाम करने का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। उषा काल में वातावरण शांत होता है और किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं रहता है। मनुष्य को ईश्वर ने नींद के रूप में एक वरदान दिया है जिससे मन, इंद्रियों व शरीर को विश्राम मिलता है और हम अगले दिन कार्य करने के लिए पूर्ण ऊर्जावान हो जाते है। मनुष्य सुख से जीवन व्यतीत कर सके इसके लिए उसका स्वास्थ्य उत्तम होना चाहिए, क्योंकि कहा गया है-'शरीर माद्यं खलु धर्मसाधनम्' इस समय वातावरण शांत रहता है। मन तथा मस्तिष्क भी पूर्ण नींद लेने के बाद तरोताजा रहता है। इसलिए पठन-पाठन और स्वाध्याय के लिए यह सर्वोत्तम समय है। जब हम दिन की शुरुआत ही जल्दी करते है तो हमारा पूरा दिन प्रसन्नता से बीतता है तथा जब तक अन्य लोग जागते है तब तक हमारे कार्य पूरे हो जाते है।
प्रात: जागरण के लिए मनुष्य को रात्रि में समय से सोना चाहिए, ताकि कम से कम छह से आठ घंटे की नींद लेकर ब्रह्म मुहूर्त में उठ सकें। समस्त स्त्री व पुरुष रात्रि के चौथे प्रहर में उठे और अपने आवश्यक दैनिक नैतिक कार्य करके सूर्योदय से पहले शुद्ध वायु में भ्रमण करे। जिससे उनका शरीर बलिष्ठ बन जाएगा और वे अपने गृहस्थ आश्रम में आनंद से रह सकेंगे। मनुष्य का प्रकृति के साथ विशेष संबंध है। इस समय प्रकृति में एक अलौकिक रमणीयता व्याप्त रहती है जिसका लाभ इसके साथ समन्वय बनाकर ही प्राप्त किया जा सकता है। इस अमृत बेला में समस्त प्राणियों के जीवन में नई ऊर्जा का संचार होने से सभी आनंदित रहते है। मनुष्य भी इस समय प्राणायाम, योगासन व ईश वंदना कर जीवन को श्रेष्ठता के मार्ग पर अग्रसर कर सकता है।

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