मुकेश पाण्डेय
रविवार, 31 अक्टूबर 2010
न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं
हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते
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